कला और समाज: एक गहरी समझ की आवश्यकता || जरूर पढिएगा || Samaj

हमने यहाँ लोगो की कला, लेकिन उस पर समाज की सोच का एक लेख प्रस्तुत किया है। एक गहरी समझ की आवश्यकता || हम आशा करते है की आपको हमारा यह लेख पसंद आये। अगर आपको हमारा लेख पसंद आये तो आप नीचे कमेंट करके हमें बता सकते हो। || Samaj

कला और समाज: एक गहरी समझ की आवश्यकता || Samaj

हमारे समाज में कला को आमतौर पर फिल्मों, प्रेरणादायक वार्तालापों और आदर्शवाद तक सीमित कर दिया गया है। पर जब बात परिवार के किसी सदस्य की कला की होती है, तो इसे केवल एक शौक के रूप में देखा जाता है। अक्सर बच्चों को ऐसी शिक्षा या करियर की ओर धकेला जाता है, जो उनके स्वभाव, रुचियों और क्षमताओं के अनुकूल नहीं होती। परिणामस्वरूप, उन्हें वह वातावरण नहीं मिल पाता, जिसमें वे अपनी कला को पनपने दें।

हर व्यक्ति का स्वभाव और प्रकृति अलग होती है। कुछ लोग शांत, आत्मकेंद्रित और घंटों तक अपने काम में डूबे रहते हैं। जैसे कि एक कलाकार, जो अपनी पेंटिंग में इतने मग्न हो जाता है कि उसे भूख-प्यास का एहसास तक नहीं होता। वह अपनी कला की बारीकियों पर ध्यान केंद्रित करता है, हर छोटे से छोटे विवरण को पूर्णता के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करता है। यह समर्पण केवल एक कलाकार का स्वाभाविक गुण होता है, जिसे सीखा नहीं जा सकता।

दूसरी ओर, जो लोग कला को एक तकनीकी कौशल के रूप में सीखते हैं, वे अक्सर इसके बारीक विवरणों पर ध्यान नहीं देते। उनके लिए पेंटिंग बनाना केवल एक प्रक्रिया होती है, जबकि एक सच्चा कलाकार अपनी कला में अपनी आत्मा झोंक देता है। यह अंतर माता-पिता को समझना होगा और अपने बच्चों के स्वभाव को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए।

आज के समय में बच्चों के करियर का फैसला केवल उनके बोर्ड के अंकों के आधार पर किया जाता है। 90% अंक लाने वाले बच्चे को विज्ञान दिलाकर डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की कोशिश की जाती है। 70-80% अंक लाने वाले बच्चों को कॉमर्स की ओर धकेला जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये अंक बच्चों की क्षमताओं और रुचियों का सही मापदंड हैं? क्या 90% अंक लाने वाले बच्चे को अपनी पसंद की कला में करियर बनाने का अधिकार नहीं है?

माता-पिता को अपने बच्चों की छोटी-छोटी आदतों को ध्यान से देखना चाहिए। यदि कोई बच्चा शांत स्वभाव का है, घंटों तक किसी चीज़ में डूबा रहता है, ज्यादा बातचीत नहीं करता, तो इसका मतलब है कि उसकी रुचि ऐसे काम में है, जो एकाग्रता और समर्पण मांगता है। लेकिन यदि ऐसे बच्चे को किसी ऐसी फील्ड में डाल दिया जाए, जहां लोगों से मिलना-जुलना, बातचीत करना और प्रबंधन करना जरूरी हो, तो क्या वह सफल हो पाएगा? उदाहरण के लिए, यदि किसी शांत स्वभाव के बच्चे को इंजीनियर बनाकर कंस्ट्रक्शन साइट पर भेज दिया जाए, तो क्या वह उस वातावरण में खुद को ढाल पाएगा?

कला केवल एक शौक नहीं है, यह भगवान द्वारा दिया गया उपहार है। जब एक बच्चा अपनी कला में जीत हासिल करता है और अपने परिवार का नाम रोशन करता है, तो परिवार को इसे केवल एक उपलब्धि तक सीमित नहीं रखना चाहिए। इसे उसके भविष्य की नींव के रूप में देखना चाहिए। लेकिन अक्सर माता-पिता उसकी उपलब्धि को सराहने के बाद यह कह देते हैं, “पढ़ाई में भी ऐसे ही ध्यान दो।” इस एक वाक्य से बच्चे के आत्मविश्वास और सपनों पर गहरा आघात होता है।

बच्चों को उनकी रुचियों और स्वभाव के आधार पर समर्थन देना बहुत जरूरी है। यदि उन्हें सही समय पर सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो वे अपनी कला के जरिए ऐसे मुकाम तक पहुंच सकते हैं, जो न केवल उनके लिए, बल्कि उनके परिवार और समाज के लिए गर्व का विषय बने।

समाज में यह सोच बदलने की जरूरत है कि कला केवल फिल्मों या प्रेरणादायक भाषणों का हिस्सा है। यह वास्तविकता है और इसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। यदि हम बच्चों को उनकी कला में आगे बढ़ने का मौका नहीं देंगे, तो हम न केवल उनकी प्रतिभा को बर्बाद करेंगे, बल्कि समाज को भी एक महान कलाकार से वंचित कर देंगे।

तो आइए, बच्चों की कला और रुचियों को केवल शौक समझने के बजाय, उनके भविष्य की ओर पहला कदम मानें। उनकी क्षमताओं को पहचानें, उन्हें प्रोत्साहित करें और उनकी रुचियों को उनके करियर का आधार बनाने में मदद करें। यही सच्चा मार्गदर्शन है, और यही सच्चा अभिभावक धर्म है।

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