यहाँ हमने कर्म और फल से रिलेटेड कुछ बात बताई है। आप इसे जरूर पढियेगा हम आशा करते है की आपको इसमें से कुछ जानने को मिले। हम आशा करते है की आपको हमारा यह लेख पसंद आए। हमारा लेख पसंद आये तो नीचे आप कमेंट कर के हमें बता सकते हो। || Karma
कर्म और फल: निष्काम कर्म का मार्ग || Karma
इस धरती पर जितने भी जीव हैं, उनमें से केवल मनुष्य को ही कर्म और उसके सिद्धांतों की समझ है। यही कारण है कि कहा जाता है कि हर जीव जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है क्योंकि वह कर्म और उसके परिणामों को नहीं जानता। लेकिन मनुष्य को यह अवसर प्राप्त है कि वह अपने कर्मों के माध्यम से या तो मोक्ष प्राप्त कर सकता है या फिर से इसी चक्र में लौट सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि इस जन्म और मृत्यु के चक्र से बचने के लिए क्या किया जाए? आखिर फल क्या है और इसे “फल” ही क्यों कहा गया है? इसे समझने के लिए एक बीज और वृक्ष के उदाहरण से इसे स्पष्ट किया जा सकता है।
जब हम एक बीज लगाते हैं, तो उसे केवल पानी देना ही पर्याप्त नहीं होता। उसे तूफानों से बचाना पड़ता है, पशुओं से सुरक्षा देनी होती है, सही मात्रा में पानी और समय-समय पर खाद देनी होती है। इन सभी प्रयासों के बाद ही वह पौधा एक वृक्ष बनता है और उसमें फूल और फिर फल लगते हैं। लेकिन फल लगते ही उसे तुरंत नहीं खाया जाता, बल्कि उसके पूरी तरह पकने तक धैर्य रखना पड़ता है।परंतु हर फल मीठा हो, यह आवश्यक नहीं है। कुछ फल खट्टे होते हैं, कुछ कम मीठे होते हैं।
इसी तरह, हमारे कर्मों के भी निश्चित परिणाम होते हैं, लेकिन वे कैसे होंगे, यह निश्चित नहीं होता। श्रीमद्भगवद गीता में निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत यही सिखाता है कि हमें बिना स्वार्थ और फल की चिंता किए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
- जैसा कर्म, वैसा फल
यह हमें सिखाता है कि सही और गलत कर्मों को पहचानना आवश्यक है क्योंकि उनके प्रभाव हमारे जीवन से गहराई से जुड़े होते हैं। - अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम
हमें अपने कर्मों को केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज और भगवान के कल्याण के लिए करना चाहिए।
अब इसे एक और दृष्टिकोण से समझते हैं। मान लीजिए कि एक छोटा बच्चा एक बीज बोता है, यह सोचकर कि उसे वही फल मिलेगा जो उसे पसंद है। वह उस बीज का ध्यान रखता है, पानी देता है, सुरक्षा करता है। जब बीज अंकुरित होता है, तो उसे बहुत खुशी होती है। धीरे-धीरे वह पौधा बढ़कर पेड़ बन जाता है, लेकिन जब उसमें फल आता है, तो वह देखता है कि यह वह फल नहीं है जिसे वह खाना चाहता था।
हालांकि, इस प्रक्रिया में उसने बहुत कुछ सीखा—किसी चीज़ की देखभाल कैसे करनी चाहिए, धैर्य कैसे रखना चाहिए। भले ही उसे उसका मनचाहा फल न मिला हो, लेकिन इस धरती पर एक नया पेड़ खड़ा हो गया, जो कई लोगों को छाया देगा, पक्षियों को बसेरा देगा। यह भी एक कर्म का फल ही है, जो उसकी सोच और जीवन में नए विचारों का संचार करेगा।
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